केवल दक्षिण भारत के चुनाव जीतकर कांग्रेस दिल्ली की गद्दी पर नहीं बैठ सकती है?

दक्षिण भारत में बीजेपी हार रही है और उत्तर भारत में बीजेपी जीत रही है, इसी तरह दक्षिण भारत में कांग्रेस जीत रही है और उत्तर भारत में कांग्रेस हार रही है,

Can't Congress sit on the throne of Delhi just by winning the elections in South India?

कॉउ बेल्ट स्टेट में किसी भी परिस्थिति में बीजेपी अपनी सत्ता को बचाए रखने में कामयाब हुई है, मोदी जी की रूहानी तकरीरों और आसमानी यात्राओं को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की आवाम ने पूरी तरह दिल से लगाया है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का संदेश शायद जनता तक ठीक से नहीं पहुँचा है?

कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ को दान देकर केवल तेलंगाना की सत्ता पाई है, मध्यप्रदेश में भी बीजेपी को चुनौती नहीं दे पाई। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले इसे सेमीफाइनल मुकाबले की तरह देखा जा रहा था, जिसमें कांग्रेस ने टोटल सरेंडर कर दिया। इंडिया गठबंधन को फिर से विचार विमर्श करने की आवश्यकता है? क्या राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी बीजेपी को हराने में सक्षम है? कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भले खड़गे हो लेकिन मुझे नहीं लगता कि बगैर सोनिया, राहुल और प्रियंका के सहमति के वे बड़े फैसले ले सकते है? जिस तरह राहुल ने जाति जनगणना और आबादी अनुसार एससी, एसटी और ओबीसी की भागीदारी की बात की लेकिन ये सिर्फ़ महज़ भाषण बन कर ही रह गई जमीन पर इसका असर क्यों नहीं दिखा? क्यों ओबीसी वर्ग ने झोली भर कर वोट नहीं दिया?

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आवाम ने आखिर संवेदनशील होकर राहुल की बातों को क्यों नहीं लिया? क्या कांग्रेस ने आबादी अनुसार एससी एसटी ओबीसी को टिकट दिए? क्या कांग्रेस एससी एसटी ओबीसी का ख्याल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में रख पाई जहां वे सत्ता में काबिज़ थे? क्या कांग्रेस के संगठन में आपस में गुटबाज़ी चल रही है? आखिर क्यों कांग्रेस अपनी रणनीतियों में विफल हो गई? आखिर कांग्रेस ने पसमांदा मुस्लिमों के सवालों को नजरंअदाज़ क्यों कर दिया? सवाल ढेर सारे है जिसका जवाब कांग्रेस और राहुल को आवाम को देना चाहिए। लेकिन अब आवाम का जो एक उम्मीद बना था कि कांग्रेस बाकि क्षेत्रीय दलों से मिलकर बीजेपी को हरा देगी? वो उम्मीद टूटता जा रहा है, इन तीनों राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के परिणाम के देखकर यही लगता है कि पार्टी के अंदर में जो गुटबाज़ी चल रही है उसका असर चुनाव परिणाम में भी दिख रहा है?

कांग्रेस के इस प्रदर्शन से उनकी जो उनका इंप्रेशन राजद, जेडीयू, शिव सेना, तृणमूल, झामुमो, एआईडीएमके इत्यादि क्षेत्रीय दलों पर बना था, वो कमज़ोर हो रहा है, मानो कांग्रेस की हैसियत एक क्षेत्रीय राजनितिक दल की हो? नीतीश, तेजस्वी, स्टालिन, केजरीवाल, ममता, उद्धव, हेमंत, इत्यादि शामिल इंडिया गठबंधन नेता अब कांग्रेस के इस हार को लेकर क्या प्रतिक्रिया देंगे अब देखना होगा? वही वे कांग्रेस के साथ चलेंगे या एकला चलेंगे? और भविष्य की राजनीती और 2024 लोकसभा चुनाव के लिए किस तरह से रणनीति बनाएंगे? ये भी अब उनके मन में सवाल उठ रहा होगा?

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बड़ा सवाल तो है खुद कांग्रेस पार्टी का है वे अपने संगठन में किस तरह बदलाव करेगें? नए सिरे से पार्टी को कैसे तैयार करेंगे? वे अपने नेताओं और कार्यकर्त्ताओं में फिर से कैसे ऊर्जा भरेंगे? जिस तरह ने राहुल ने अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों पर सवाल उठाएं और मोदी सरकार पर हमले किए? क्या अब वे इन में बदलाव करेंगे? या यूंही ये जारी रहेगा? जातिगत जनगणना और समाजिक न्याय की बातें जो राहुल ने उठाई क्या वो जारी रहेंगे?

2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी करने के लिए किन मुद्दों को गम्भीरता से लेंगे और जनता के बीच जायेंगे ये भी एक सवाल है? बीजेपी के हिंदुत्व के पीच की राजनीति को जातिगत जनगणना और समाजिक न्याय की राजनीती से कांग्रेस कैसे काउंटर करेगी? क्या कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व को छोड़ कर एक नए तरह की रणनीति से बीजेपी को चुनौती देगी? इंडिया गठबंधन के बाकि क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस कैसे मैनेज करेगी ये भी एक बड़ा सवाल है? इन दलों से समन्वय कैसे बरकरार रखेगी? इनका भरोसा कैसे जीतेगी? वहीं बीजेपी ने बिना क्षेत्रीय दलों के सहयोग से खुद स्थापित किया है, आरएसएस से रिश्ते को लेकर जरूर खटास आई है, भागवत इस चुनाव परिणाम से चौंक जरूर गए होंगे?

लेकिन पार्टी की ताकत को भी समझ गए होंगे। मोदी, शाह और नड्डा पर जो सवाल उठने वाले थे वो अब लगभग खत्म ही हो गई होगी, क्योंकि जब तक आपकी पार्टी चुनाव जीत रही है सही गलत कुछ होता नहीं, अब यहां से तो साफ ही लग रहा है कि बीजेपी की तरफ़ से अगला प्रधानमंत्री उम्मीदवार मोदी ही होंगे, लेकिन इंडिया गठबंधन में परिवर्तन की भरपूर आशंका है?

इन राज्यों के चुनाव परिणाम ने बिल्कुल साफ कर दिया है राहुल की मोहब्बत की दुकान अभी खुलने में देरी है? लेकिन तेलंगाना चुनाव के परिणाम में ये भी साफ दिख रही की दक्षिण भारत की राजनीती, उत्तर भारत की राजनीती से मेल नहीं खाती है? लेकिन केवल दक्षिण भारत के चुनाव जीत कर कांग्रेस दिल्ली की गद्दी पर नहीं बैठ सकती है? उन्हें उत्तर भारत की राजनीती में अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी।

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