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झारखंड में जब कोई जन आंदोलन/प्रदर्शन होता है तो पोस्टर/बैनरों पर हमेशा बिरसा मुंडा, जयपाल सिंह मुंडा, बिनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो और कॉमरेड अरुण कुमार रॉय का चेहरा नज़र आता है।
बिरसा मुंडा, जयपाल सिंह मुंडा, बिनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो और कॉमरेड अरुण कुमार रॉय इन नेताओं का चेहरा राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के पोस्टर/बैनर/पंपलेट/मेनिफेस्टो भी अक्सर इन्हीं नायकों को दिखाया जाता है। बिरसा मुंडा और जयपाल मुंडा सिंह को आदिवासी चेहरे के रूप में दिखाते हैं क्योंकि झारखंड की 26 फ़ीसदी आबादी आदिवासी समुदाय से आते है, उन्हें भला नाराज़ कौन कर सकता है?
दूसरी तरफ बिनोद बिहारी महतो और निर्मल महतो के तस्वीरों को दिखाया जाता है क्योंकि झारखंड की लगभग 12 से 14 प्रतिशत आबादी कुड़मी समुदाय की है, आदिवासी के बाद राज्य में सबसे ज्यादा सांसद/विधायक इसी समुदाय के बनते हैं। इनकी जाति का भी आज कल खूब राजनीतीकरण हुआ है। लिहाज़ा इन्हें भी कोई नाराज़ नहीं कर सकता है। फिर कॉमरेड अरुण कुमार रॉय के चेहरे को जगह मिलती है कारण है इन्होंने ने कोलियरी मजदूरों के लिए कई लड़ाईयां लड़ी, ये मार्क्सवादी विचारधारा के थे। इन्होंने मार्क्सिस्ट कॉर्डिनेशन कमिटी पार्टी बनाई, शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो की बनाई झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी ने ये संस्थापक सदस्य थे। कोयलांचल में लोग इनका नाम बड़े आदर से लेते हैं। इन्हें मजदूरों के नेता के रूप में दिखाते हैं। लेकिन जोल्हा – अंसारी मुस्लिम समुदाय के क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, झारखंड आंदोलनकारी नायकों के साथ भेदभाव क्यों?
जोल्हा – अंसारी समुदाय जो झारखंड की कुल मुस्लिम जनसँख्या में अकेले 90 प्रतिशत से ज्यादा है और झारखंड की कुल आबादी में 14 से 16 प्रतिशत है। अभी कुछ वर्षों से इनका समर्थन पाने के लिये सामाजिक संगठनों और राजनितिक दलों ने शेख़ भिखारी अंसारी के तस्वीर को भी जोड़ना शुरू किया है। शेख़ भिखारी अंसारी 1857 क्रांति के नायक थे। इन्हें अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। भिखारी 1858 में शहीद हो गए, 150 साल से ज्यादा समय बीत गया क्या कोई दूसरा जोल्हा – अंसारी मुस्लिम नेता/क्रांतिकारी/स्वतंत्रता सेनानी/झारखंड आंदोलनकारी नहीं हुए जिसकी तस्वीर लगाई जाए? इसका जवाब है बिल्कुल है लेकिन उन्हें तवज़्ज़ो नहीं दी गई। वो राजनीति के शिकार हो गए, उनकी कुर्बानियों को भुला दिया गया। उन्हें जो मान सम्मान मिलना चाहिए था मिला नहीं। झारखंड आंदोलन में कई बार जेल भी गए। झामुमो पार्टी के शीर्ष पदों पर आसीन रहे।
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अगर जोल्हा-कोल्हा भाई-भाई है तो जोल्हा के साथ भेदभाव क्यों?
प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी 1983 में दुमका में झारखंड दिवस मनाने के जुर्म में गिरफ्तारी हुई। 1989 में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन्हें केंद्रीय समिति का सचिव बनाया। कमिटी ऑन झारखंड मैटर्स के तहत दिल्ली जाकर राजीव गांधी से बातचीत करने वाले में ये भी शामिल रहे। अगस्त 1995 में जब झारखंड एरिया ऑटोनोमस काउंसिल (Jharkhand Area Autonomous Council) गठन हुआ जिसके अध्यक्ष शिबू सोरेन थे। जब इस में किसी भी मुस्लिम जोल्हा – अंसारी को सदस्य नहीं बनाया गया तो उन्होंने अपने समुदाय के प्रतिनिधित्व को लेकर विरोध प्रदर्शन किया? उस समय वे झामुमो के केंद्रीय सचिव थे, उन्होंने एक प्रेस रिलीज़ की और कहा ” JAAC नाम का पौधा जो खिला है इसमें शहीद अब्दुल वहाब अंसारी, कुतुबुद्दीन अंसारी, इस्लाम अंसारी, जुबैर अंसारी की खून की महक आती है इन झारखंड आंदोलकारियों और शहीदों की कुर्बानियों को बेकार नहीं जाने दिया जाएगा”।
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1996 में पार्टी विशेषकर सूरज मंडल से गंभीर मतभेद होने के कारण झामुमो से त्याग पत्र देकर अलग हो गए।
कई बार चुनाव लड़े, एकबार जीत गए लेकिन उन्हें जितने नहीं दिया गया, एकबार उन्हें पार्टी ने ही खुद हराया, अब वो इस दुनिया में नहीं रहे। लोगों की नज़र में आज भी जीते हुए हैं। लेकिन धोखा उन्हें कागज़ों ने दिया। 1980 से 1998 तक शिबू सोरेन के साथी रहे। शिबू सोरेन, सूरज मंडल के साथ मिलकर संथाल परगना से लेकर छोटानागपुर कोल्हान तक आंदोलन किया। झारखंड राज्य निर्माण करने के लिए, लेकिन इतिहास के पन्नों से वो ग़ायब कैसे हो गए? जाके दस्तावेजों रिकॉर्डो को उठा के देखिए कौन है प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी? क्या योगदान दिया है झारखंड आंदोलन में? आख़िर क्यों उसे वो मान व सम्मान नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे? झामुमो के परिवारवादी व सुप्रीमोंवादी सोच ने उसके अस्तित्व व कुर्बानियों को भुला दिया ?
प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी सिर्फ हमारे जोल्हा – अंसारी मुसलमानों के नेता नहीं थे बल्कि वो झारखंड आंदोलन में बड़े नाम (अज़ीम शख्सियत) महान क्रांतिकारी थे। हमारे समुदाय से कई लोगों ने झारखंड आंदोलन में अपनी जान गवाई है राज्य निर्माण के लिये बलिदान दिया है। लेकिन वो कभी कागज़ के पन्नों पर रेकॉर्ड नहीं हो पाए। आज विकिपीडिया पर सूरज मंडल जी का नाम देखकर खुशी हुई लेकिन प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी का नाम गायब देखकर दुख भी हुआ, अगर जोल्हा कोल्हा भाई भाई है तो जोल्हा के साथ भेदभाव क्यों?
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Razaul Haq Ansari is a Pasmanda Activist from Deoghar Jharkhand, He works to upliftment for unprivileged lower castes among Muslims [ST, SC and OBC among Muslims]. He is associated with anti-caste and social justice movement since 2018.