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आजादी के 76 वर्ष: आजादी बंधनों से मुक्ति का नाम है, सभी को प्यारी है, यह अनमोल है। यह मुफ्त में नहीं मिलती, यह त्याग और बलिदान मांगती है।
- क्या वाकई असल आज़ादी है ?
- क्या सच में न्याय हो रहा है ?
- आज भ्रष्टाचार पर कार्यपालिका और न्यायपालिका मौन क्यों है?
लेखक: इमाम सफी, झारखंडी खतियान मोर्चा (JKM) संस्थापक सदस्य
झारखंड: हमारा देश भारत वर्षों गुलामी के बाद कड़ी संघर्ष, त्याग व बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है। आज़ादी के लिए सर्वश्व निछावर करने वाले वीर पुरुषों की लंबी लिस्ट है। जितने शहीदों के इतिहास में नाम दर्ज है उससे कहीं अधिक गुमनाम हैं।
झारखंड के तिलका मांझी से लेकर सिद्ध कान्हु, चांद भैरव,फुलो झानो,शहीद सेख भिखारी, ठाकुर विश्वनाथ सहदेव,मंगल पाण्डेय, वीर कुंवर सिंह, लक्ष्मी बाई, नीलाम्बर,पीताम्बर के अलावे वीर बिरसा मुंडा, ताना भगत, खुदीराम बोस,भगत सिंह , सुखदेव , राजगुरु, महात्मा गांधी जैसे अनगिनत वीर शहीदों को आज भुलाया जा रहा है।
सबसे विडंबना है उनके परिवार के सदस्य आज भी उपेक्षित हैं, दर दर भटकने को मजबूर हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे चंद अवसर पर सरकार और जनता सिर्फ औपचारिकता पूरी करते हैं और अपने दिनचर्या में मग्न हो जातें हैं। शहीद परिवार के साथ बदसलुकी और शोषण भी होता है किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्या वाकई असल आज़ादी है ?
वैसे तो कहने को आजादी के अमृत वर्ष मनाया जा रहा है लेकर स्वंतत्र सेनानी के वंशज विष के घुंट पी रहे हैं। एक तरफ हर घर तिरंगा फहराया जा रहा है दुसरी ओर जाति-धर्म की ज़हर घोला जा रहा है।
क्या सच में न्याय हो रहा है ?
एक तरफ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात होती है वहीं दूसरी ओर बहु बेटियों को निर्वस्त्र घुमाया जा रहा है।
एक तरफ आदिवासी ,दलित समाज से राष्ट्रपति बनाया जाता है वहीं दूसरी ओर सांसद भवन उदघाटन समारोह से दूर रखा जाता है।
कहीं मुंह में पेशाब किया जाता है। लोकतंत्र की बात करके घरों में बुलडोजर चलाया जाता है। सुशासन के नाम पर मोबलिंचिग व एनकाउंटर कराया जाता है।
केंद्र सरकार ने जनता को ठगा
विश्वगुरु बनने की बात तो होती है लेकिन देश विदेशी कर्ज में डूबता जा रहा है। महंगाई और बेरोज़गारी चरम है, आवाज उठाने पर देशद्रोही कहा जाता है।
काला धन वापस लाने की वादा करके सरकारी संस्थान बेचा जा रहा है। सभी सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य से ज्यादा शराब पर ध्यान दे रही है। सिर्फ राजनीतिक आजादी मिली है आर्थिक आजादी बाकी है।
क्या कानून सब के लिए बराबर है?
आज भी अंग्रेज की भाषा और बांटो और राज करो की नीति देश में हावी है ।
अपराधी लोग सदन पहूंच रहे हैं। विधायक और सांसद सदन जाते हैं कानून बनाने लेकिन गुण्डा गर्दी करके कानून तोड़ते हैं।
आज भ्रष्टाचार पर कार्यपालिका और न्यायपालिका मौन है!
कार्यपालिका में भ्रष्टाचार चरम पर है, लगभग सभी विभागों में कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक का कमिशन बंधा है।
न्यायपालिका में समय पर न्याय मिलना मुश्किल है। लाखों केस वर्षो से पेंडिंग है। यहाँ भी गरीबों का शोषण होता है, यहाँ भी लाखों हजारों खर्चे है। आज भी आम जनता के लिए कानून की प्रिक्रिया बहुत जटिल है।
मीडिया सरकार का तोता बना हुआ है।
सभी बड़े मीडिया सरकार के आगे घुटने टेक चुकी है वे सरकार के बश्रजाय विपक्ष से सवाल करती हैं।
देश में अघोषित आपातकाल लागू है। लोकतंत्र ख़तरे में है। सवाल पुछना संकट को दावत देना है।
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