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झारखंड की राजनीति में कहां खड़े हैं मुसलमान? – रज़ाउल हक़ अंसारी

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झारखंड में मुसलमानों की आबादी 14.53 फीसदी है, तकरीबन 47.94 लाख 2011 सेंसस डेटा के अनुसार हालांकि इससे कुछ लाख ज्यादा ही होंगे क्योंकि 2022-23 सेंसस डेटा के आंकड़े अभी आने बाकि है।

Where do Muslims stand in Jharkhand politics

झारखंड के कुल मुस्लिम आबादी में जोल्हा – मोमिन – अंसारी समुदाय की आबादी इनमें अकेले 90 प्रतिशत से ज्यादा है। झारखंड की कुल मुस्लिम आबादी का 22.73 प्रतिशत अकेले संताल परगना में निवास करती है। सबसे अधिक मुस्लिम 10 मुस्लिम आबादी वाले जिले में 6 जिले सिर्फ़ संताल परगना के अंतर्गत आते है।

झारखंड के 10 सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले जिले

  1. पाकुड़ ( 35.87 प्रतिशत)
  2. साहिबगंज ( 34.61 प्रतिशत)
  3. गोड्डा ( 22.02 प्रतिशत)
  4. गिरिडीह ( 20.80 प्रतिशत)
  5. जामताड़ा ( 20.78 प्रतिशत)
  6. लोहरदग्गा ( 20.57 प्रतिशत)
  7. देवघर ( 20.28 प्रतिशत)
  8. हजारीबाग (16.08 प्रतिशत)
  9. धनबाद ( 16.21 प्रतिशत)
  10. राँची ( 16.42 प्रतिशत)

इनमें पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, देवघर, जिले संताल परगना के अन्तर्गत आते है।

गोड्डा, कोडरमा, राजमहल लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी चुनाव परिणाम में निर्णायक भूमिका निभाते है। गोड्डा और कोडरमा लोकसभा में 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है वहीं राजमहल लोकसभा में 30 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

झारखंड में सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसँख्या वाला विधानसभा कौन कौन से हैं?

राजमहल लोकसभा अनुसूचित जनजाति के आरक्षित है इस वजह से वहाँ मुसलमान चुनाव लड़ नहीं सकता। विधान सभा क्षेत्रों में पाकुड़ में 35.08%, राजमहल 34.06%, जामताड़ा 32%, मधूपुर 31%, गोड्डा 27%, राजधनवार 26%, सारठ 25%, डुमरी 25% गांडेय 25%, टुंडी 22%, महागमा 20%, बगोदर 20%, हटिया 20%, धनबाद 18%, बोकारो 17%, प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है, इसके अतिरिक्त कुछ विधान सभा क्षेत्र है जहां अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सीट आरक्षित है, लेकिन इन में कुछ ही सीट है जहां से मुस्लिम उम्मीदवार मुश्किल से चुनाव जीत पाते है, मौजूदा झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल वाली गठबंधन सरकार में दो मंत्री मुस्लिम समुदाय से आते है, आलमगीर आलम पाकुड़ से विधायक हैं और कांग्रेस कोटा से हेमंत सरकार में केबिनेट मंत्री है, वहीं हफीजुल हसन अंसारी मधुपुर से विधायक है और झामुमो कोटे से कैबिनेट मंत्री है।

इसके अतिरिक्त डॉ. इरफ़ान अंसारी जामताड़ा विधान सभा से एवं डॉ. सरफराज अहमद गांडेय विधान सभा से विधायक है। झारखंड में अभी तक मुस्लिम समुदाय को आबादी अनुसार राजनितिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

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मुस्लिम समुदाय को अलग थलग करने की कोशिश

हिंदू मुस्लिम सांप्रयिकता और धुर्वीकरण की राजनीति ने मुस्लिम समुदाय को अलग थलग करने की कोशिश की है। जिसका सबसे ज्यादा नुकसान यहां के जोल्हा – मोमिन -अंसारी समुदाय को हुआ है, क्योंकि मुस्लिम आबादी में अकेले ये समुदाय 90 फ़ीसदी से ज्यादा है। आए दिन राज्य में मॉबलिंचिंग की घटनाएं होती रहती है जिसके सबसे ज्यादा शिकार यही समुदाय रहा है। अलीमुद्दीन अंसारी, तबरेज़ अंसारी, मिन्हाज अंसारी और अभी हाल में शमशाद अंसारी की हत्या मॉबलिंचिग द्वारा ही हुईं। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार अभी तक मॉबलिंचिग विरोधी कानून बनाने में असफल रही है।

झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग का गठन

तीन साल बाद अभी कुछ महीने पहले झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग का गठन हुआ, जिसमें हेदायतुल्ला खान को आयोग का अध्यक्ष, ज्योति सिंह माथारू एवं शमशेर आलम को उपाध्यक्ष बनाया गया। उर्दू शिक्षकों की भर्ती कई सालों से राज्य में नहीं हुई है। उर्दू अकादमी, मदरसा बोर्ड, अल्पसंख्यक वित्त निगम, वक्फ बोर्ड का अभी तक गठन नहीं हुआ है जिससे मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को काफ़ी नुकसान हुआ है।

झामुमो गठबंधन सरकार बनाने में अहम योगदान दिया है

जिस तरह मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के मददाता ने झामुमो गठबंधन सरकार बनाने में अहम योगदान दिया है और जोल्हा कोल्हा एकता को मजबूत कर बीजेपी की रघुवर सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंका लेकिन क्या इस हेमंत सरकार में उसके मसले हल हो रहे है? ये एक बड़ा सवाल है? पिछले 2019 लोकसभा चुनाव में एक भी टिकट मुस्लिम समुदाय को झामुमो कांग्रेस राजद गठबंधन ने नहीं दिया। गोड्डा लोकसभा सीट से फुरकान अंसारी का टिकट काट दिया गया। उस समय हेमंत सोरेन ने कहा था अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से किसी व्यक्ति को राज्यसभा भेजा जाएगा लेकिन अभी तक ये वादा हेमंत सोरेन ने पूरा नहीं किया? झारखंड राज्य बनने के बाद केवल एक ही सांसद मुस्लिम समुदाय से चुने गए है जो बहुत ही अफसोस की बात है।

इस बार अगर मुस्लिम ख़ासकर जोल्हा – अंसारी समुदाय को गोड्डा और कोडरमा लोकसभा से टिकट नहीं मिली तो झामुमो, कांग्रेस भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

यह भी पढ़े: झारखंड राज्य की माँग सबसे पहले एक पसमांदा जोल्हा – अंसारी ने की थी

झारखंड के मुस्लिम सांसद

  1. 1952 अब्दुल इब्राहिम अंसारी
  2. 1957 काज़ी एस ए मतीन- गिरिडीह -सीऐंनएसपीजेपी
  3. 1967 ए आई अहमद -गिरिडीह- कांग्रेस
  4. 1980 मौलाना समीउद्दीन-गोड्डा -कांग्रेस
  5. 1984 सरफ़राज़ अहमद-गिरिडीह-कांग्रेस
  6. 1985 सलाउद्दीन अंसारी-गोड्डा-कांग्रेस
  7. 1991 मुमताज़ अंसारी-कोडरमा-जनता दल
  8. 2004 फुरकान अंसारी-गोड्डा-कांग्रेस
Muslim MP from Jharkhand (झारखंड के मुस्लिम सांसद)

पढ़ सकते है: अब्दुल इब्राहिम अंसारी कौन थे, और राँची के पहले सांसद कैसे बने?

झारखंड के अब तक मुस्लिम विधायक

  1. 1952 – मो बुरहानुद्दीन खान (जाति – पठान) राजमहल
  2. 1990 – मो हसन रिज़वी (जाति -सैय्यद) जमशेदपुर पश्चिम
  3. 1985 – फुरकान अंसारी (जाति- जोल्हा, अंसारी) जामताड़ा
  4. 1995 – हुसैन अंसारी (जाति- जोल्हा, अंसारी) मधुपुर
  5. 2005 – इजराइल अंसारी (जोल्हा- अंसारी) बोकारो
  6. 2009 – मन्नान मल्लिक (जाति- सैय्यद) धनबाद
  7. 1980 – सरफ़राज़ अहमद (जाति- सैय्यद) गांडेय
  8. 2000 – आलमगीर आलम (जाति- शेरशाबादी) पाकुड़
  9. 1995 – सबा अहमद (जाति सैय्यद) टुंडी
  10. 2009 – निजामुद्दीन अंसारी (जाति- जोल्हा, अंसारी) राजधनवार
  11. 2009 – अकिल अख्तर (जाति- शेरशाबादी) पाकुड़
  12. 2014 – इरफ़ान अंसारी (जाति- जोल्हा, अंसारी) जामताड़ा
  13. 2021 – हफिजुल हसन अंसारी (जाति- जोल्हा, अंसारी) मधुपुर
Muslim MLAs of Jharkhand till now (अब तक झारखंड के मुस्लिम विधायक)

यह भी जाने: झारखंड के गुमनाम आंदोलनकारी, प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी कौन थे?

क्या कहते हैं खतियानी जोल्हा परिषद?

खतियानी जोल्हा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रज़ाउल हक़ अंसारी कहते है ” झारखंड की मांग से पहले एक जोल्हा ने 1912 में अंग्रेजों से की थी जिसका नाम है असमत अली, 1962 में जहूर अली ने जयपाल सिंह मुंडा के साथ मिलकर जोल्हा कोल्हा भाई भाई का नारा दिया था, 1995 में अगर अब्दुल वहाब अंसारी, कुतुबुद्दीन अंसारी, मुर्तुजा अंसारी झारखंड आंदोलन शहीद नहीं होते तो JAAC का नहीं निर्माण नहीं और इतनी जल्दी झारखंड राज्य का निर्माण भी होता। चाहे संथाल विद्रोह के नायक चालों जोल्हा हो, 1857 क्रांति के नायक शेख़ भिखारी अंसारी हो, चाहे स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल इब्राहिम अंसारी हो, चाहे झारखंड आंदोलनकारी प्रोफ़ेसर अबू तालिब अंसारी हो, हमने बाकि आदिवासी, मूलवासी, कुड़मी,सदान की तरह बराबर की कुर्बानी दी इसका हमारे पास ठोस दस्तावेज़ मौजूद है जिसे आसानी से सिद्ध किया जा सकता है।

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