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“हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।”
मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेर इंसान की अनगिनत इच्छाओं और अरमानों को गहराई से व्यक्त करता है। यह बताता है कि इंसान की ख्वाहिशें कभी खत्म नहीं होतीं। एक ख्वाहिश पूरी होने पर दूसरी ख्वाहिश सिर उठाती है, और इस सिलसिले में व्यक्ति जीवनभर उलझा रहता है। इस शेर में ग़ालिब ने अपनी एक अनोखी दार्शनिक दृष्टि को प्रस्तुत किया है कि इच्छाओं की यह दुनिया कभी तृप्त नहीं होती।