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आदिवासियों की अपनी धार्मिक दर्शन है, आदिवासी जिस धर्म को मानते है उसे सरना धर्मं कहा जाता है।
Parasnath Hill, Jharkhand Updates: आदिवासियों का जीवन शेली, परंपरा, संस्कृति इत्यादि बाकि समुदायों से विभिन्न है आदिवासी प्रकृति पूजक होते है वे किसी मूर्ति, आकृति, प्रतिमा और मंदिर की पूजा में विश्वास नहीं करते है. वे प्रकृति को जीवन का अभिन्न अंग मानकर उनकी पूजा करते है प्रकृति के लिये वे गाते है और नाचते भी है।
बोंगा को अलौकिक शक्ति के रूप में पूजा जाता है
जो प्रकृति का अंतिम रूप है वे सभी प्राकृतिक स्रोतों की पूजा और उसमे विश्वास करते है जो उनकी जीवन को किसी न किसी रूप से प्रभावित करते है वे प्रकृति के प्रति पूजा, नृत्य व गीत गा कर उसका आभार व्यक्त करते है।
मरांग बुरु को सर्व शक्तिमान के रूप में पूजा जाता है।
जिसका कोई आकार, आकृति व मूर्ति नहीं होता है आदिवासियों के अनुसार वे कोई देवी या देवता नहीं है मरांग बुरु को प्रकृति का रूप मानते है जो उन्हें वर्षा, जल, वायु, जमीन, जंगल, नदी इत्यादि सब कुछ देती है मरांगबुरु का शाब्दिक अर्थ, मरांग का अर्थ बड़ा और महान है। जबकि बुरु का अर्थ पहाड़ से है आदिवासियों के संदर्भ में पहाड़, नदी, बेल, हवा, जमीन, अग्नि, जल, या सम्पूर्ण प्रकृति को मरांगबुरु है।
आदिवासी मरांग बुरु को प्रकृति के रूप में अनुभव करते है।
वह उसे वास्तिविक मित्र समझता है जो लोगों की परेशानी में उनकी मदद करते है और उनके परिश्रम को आशीर्वाद भी देते है। आदिवासियों ने निश्चित रूप से अनेक प्रकार के प्राकृतिक आपदा से सामना करते है जेसे सूखे, अकाल, महामारी, इसके साथ गरीबी से भी पीड़ित है सामाजिक-आर्थिक शोषण के भी शिकार है लेकिन जब प्रकति विपदाओ का कारन बनती है तो इन आपदाओं को मरांग बुरु (प्रकृति) की अप्रसन्नता का संकेत मन जाता है. लेकिन उसी समय आदिवासियों की पौराणिक कथाओ में दर्ज़ भगवान के दयालु कार्यो का अनुभव भी करते है।
आदिवासी मरांग बुरु को अलौकिक शक्ति का रूप मानते है।
जैसे प्रकृति सबसे बड़ी ताकत है जिसका जन्म पृथ्वी की तरह अस्पष्ट है और उसे अलौकिक शक्ति के रूप में माना जाता है। जिसने हर वस्तु पर नियंत्रण किया है जो प्रकृति है जिसने मानव और हर वो वस्तु का निर्माण किया है जो हम पृथ्वी पर देखते है।
इस तरह की पूजा पद्दति जो आदिवासियों द्वारा अपनाई गई है। प्रकृति की पूजा करना अधिक व्याहारिक व यथार्थवादी है।
आदिवासियों का धार्मिक दर्शन और विश्वास नदियों से जुड़ा है जो उन्हें खेती में मदद करते है, वे पहाड़ो और जंगलो की पूजा करते है जो उन्हें लकड़ी और अन्य संसाधन देते है, वे सूर्य की पूजा करते है जो उन्हें प्रकाश व उर्जा देते है इसे वो संताली में सिन बोंगा कहते है सिन का संताली में अर्थ होता है दिन या प्रकाश और बोंगा का अर्थ भगवान होता है।
आदिवासियों का चाहे धार्मिक दर्शन जो हो, लोकगीत जो हो, लोकसाहित्य, लोकनृत्य, सामुदायिक जीवन, सामाजिक कर्मकांड, दर्शन इत्यादि जो भी हो सभी में प्रकृति की उपस्तिथि हर जगह पाई जाती है।
Razaul Haq Ansari is a Pasmanda Activist from Deoghar Jharkhand, He works to upliftment for unprivileged lower castes among Muslims [ST, SC and OBC among Muslims]. He is associated with anti-caste and social justice movement since 2018.