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झारखंड के आंदोलनकारियों में आज बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन व सूरज मंडल को तो सभी लोग जानते है लेकिन एक नाम ऐसा है जिनके संघर्ष व कुर्बानियों को नजर अंदाज कर दिया गया है, नाम है प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी, इस लेख में हमने अंसारी साहब के झारखंड राज्य निर्माण में दिये योगदान पर रोशनी डाली है.
- अंसारी साहब को निर्वाचन कर्मियों से जीत का प्रमाण पत्र लेने नहीं दिया
- 1983 में दुमका में झारखंड दिवस मनाने के जुर्म में प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी की गिरफ़्तारी हुई
- चितरा कोलियरी पर बाहरी लोगों का वर्चस्व व नियंत्रण था
- मुसलमान अगर शहीद न होते तो झारखंड एरिया औटोनोमस कोंसिल (JAAC) का गठन भी न होता
पहले हम उनके बारे में जानते है कि कौन थे प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी?
प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी का जन्म 11 सितंबर 1950 को जामताड़ा जिले के कर्माटाड़ गाँव में हुआ था, इनके पिताजी का नाम याकूब अंसारी व माता जी का नाम पूर्णिमा बीबी थी.
1978 में झामुमो पार्टी से जुड़े अबू तालिब अंसारी, 1980 में पहली बार प्रोफेसर अंसारी निर्दलीय चुनाव सारठ विधानसभा से लड़े, जिसमें उन्हे 8468 वोट मिले वो तीसरे स्थान पर रहे, 1985 में झामुमो फिर चुनाव लड़े इस बार उन्हे 16340 वोट मिले फिर तीसरे स्थान पर रहे, 1990 मे फिर चुनाव लड़े इसबार उन्हे 28053 वोट मिले इसबार दूसरे स्थान पर रहे, 1995 मे फिर विधानसभा चुनाव लड़े इस बार भी दूसरे स्थान पर रहे. सारठ विधानसभा के झारखंड आदोंलनकारी अब्दुल गफ़ूर अंसारी साहब बताते है कि 1990 एक बार प्रोफेसर अंसारी साहब चुनाव जीत गए थे लेकिन शाषण प्रशाषन व बाहरियों की मदद से सामंतीयों ने अंसारी साहब को निर्वाचन कर्मियों से जीत का प्रमाण पत्र लेने नहीं दिया, प्रोफेसर साहब के समर्थकों को डरा धमकाकर मतदान गिणती केंद्र से भगा दिया गया.
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1983 में दुमका में झारखंड दिवस मनाने के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया गया
1983 में दुमका में झारखंड दिवस मनाने के जुर्म में प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी की गिरफ़्तारी हुई, उस समय वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता थे, झामुमो ने 1989 में उन्हे केन्द्रीय समिति का सचिव बनाया। इसी साल राजीव गांधी ने कमिटी ऑन झारखंड मेटर्स बनाया जिसके तहत दिल्ली जाकर बातचीत करने वालों में अबू तालिब अंसारी शामिल थे. झारखंड स्वायत्त परिषद बनने पर उन्हे पार्षद (काउंसिलर) बनाया गया।
चितरा कोलियरी पर बाहरी लोगों का वर्चस्व व नियंत्रण था
1994 तक कर्माटाड़ से सटे चितरा कोलियरी पर बाहरी लोगों का वर्चस्व व नियंत्रण था, मजदूरों का शोषण किया जा रहा था, 10 जनवरी 1994 को मजदूर यूनियन के नेता श्याम सुंदर सिंह को दिन दहाड़े गोली मार दी गई, जैसे ही प्रोफेसर अंसारी को पता चला अपने समर्थकों के साथ चितरा कोलियरी चले गए प्रोफेसर अंसारी का नाम सुनकर कोलियरी के सटे सभी गाँव के लोगों में हिम्मत आई और बाहरियों को भगाने के नारे लगने लगे, और विरोध प्रदर्शन तेज हो गई , प्रोफेसर अंसारी ने लोगों को जागरूक कर ऐसा आंदोलन किया कि बाहरियों को कोलियरी छोड़कर भागना पड़ा.
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झारखंड मिल्ली कौंसिल का गठन।
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मुसलमान अगर शहीद न होते तो झारखंड एरिया औटोनोमस कोंसिल (JAAC) का गठन भी न होता
झारखंड एरिया औटोनोमस कोंसिल JAAC 30 जुलाई 1995 में बनी जिसके अध्यक्ष थे शिबू सोरेन गुरुजी, जब इस में किसी भी मुसलमान सदस्य को नहीं लिया गया तो प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी ने मुस्लिम प्रतिनिधित्व को शामिल कराने को लेकर विरोध प्रदर्शन किया, उस समय अंसारी साहब झामुमो के केन्द्रीय सचिव थे तो उन्होंने एक प्रेस रिलीज की, उन्होंने कहा ” JAAC नाम का पौधा आज जो खिला है इसमें शहीद वहाब अंसारी, कुतुबुद्दीन अंसारी, सईद अंसारी, जूबेर अहमद, की खून की महक आती है इन शहीदों के कुर्बानियों को बेकार नहीं जाने दिया जाएगा.
सूरज मण्डल से मतभेद होने के कारण झामुमो से अलग हो गए
1996 मे पार्टी विशेषकर सूरज मण्डल से गंभीर मतभेद होने के कारण झामुमो से त्याग पत्र देकर अलग हो गए, 1997 मे शरद यादव की पहल पर जनता दल मे शामिल होकर झारखंड जनता दल यूनिट के महासचिव बन गए, 2000 को राँची मे पार्टी के छठे महाधिवेशन मे उन्हे पार्टी की केन्द्रीय समिति का महासचिव बनाया गया। 6 सितंबर 2017 को अंसारी साहब का देहांत हो गया।
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Razaul Haq Ansari is a Pasmanda Activist from Deoghar Jharkhand, He works to upliftment for unprivileged lower castes among Muslims [ST, SC and OBC among Muslims]. He is associated with anti-caste and social justice movement since 2018.