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झारखंड का चितरा कोलियरी “गैंग ऑफ़ वासेपुर” की राह पर

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देवघर जिले का एक मात्र औधोगिक क्षेत्र क्यों बना राजनितिक आखाडा ? सारठ विधानसभा की राजनीती कैसे चितरा कोलियरी नियंत्रित करती है?

झारखंड का चितरा कोलियरी "गैंग ऑफ़ वासेपुर" की राह पर
Chitra Coal Mines

Jharkhand Updates: ईस्टर्न कोल् फील्ड लिमिटेड के अंतर्गत आने वाले संथाल परगना माइंस चितरा कोलियरी इन दिनों मुश्किल दौर से गुजर रहा है वर्चस्व की लड़ाई को लेकर कभी कोलियरी बंद कभी चालू होता है चितरा कोलियरी गैंग्स ऑफ वासेपुर बन चुका है फ़र्क सिर्फ यही है यहाँ एक दो नहीं बल्कि तीन रामाधीर सिंह है और फैज़ल कोई नहीं?

कोलियरी कुछ लोगों की पर्सनल प्रॉपर्टी बन चुका है

इस कोलियरी की बदौलत दो विधायक बन चुके है और वर्तमान विधायक भी इसी चितरा कोलियरी क्षेत्र से आते है देवघर जिले का एक मात्र औद्योगिक क्षेत्र राजनीतिक अखाड़ा बन चुका है आखिर ये बंदर बांट कब तक चलेगा किसी को पता नहीं? मेरा गाँव ठाड़ी, चितरा कोलियरी से सटा हुआ इसलिए रोज़ मुझे नई-नई खबरें मिलती रहती है कोलियरी बंद रहे या चालू रहे यहाँ के बहुजन/पसमांदा/आदिवासी को कोई फर्क नहीं पड़ता है? मजदूरों को कोलियरी से बस इतना ही मिलता है जिससे वो दो वक्त की रोटी जुटा सके? 

SP Mines Colliery, Chitra Coal Mines
S. P Mines Chitra Colliery, Deoghar

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किन लोगों ने चितरा कोलियरी को राजनीतिक अड्डा बना दिया है

ईस्टर्न कोल् फील्ड लिमिटेड के अंतर्गत आने वाले संथाल परगना माइंस चितरा कोलियरी (देवघर) को ढाई सौ करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है आखिर इस नुकसान का जिम्मेदार कौन है?

आखिर कोलियरी को किन लोगों ने राजनीतिक अड्डा बना दिया है? कोलियरी कैसे तय करती कि सारठ विधानसभा का विधायक कौन बने? कोयले और जाति किस तरह दोंनो कोलियरी पर काम करते हैं? एक शेर है- वक़्त का तकाज़ा देखो साहब कोयले कोहिनूर बन गए हैं! और ये कोहिनूर सिर्फ एक ही जाति के घरों को रोशन करता है!

इसलिए हमारे जैसे लोग जो सामाजिक न्याय की बात करते हैं जो जल जंगल जमील व झारखंडी अस्मिता की बात करते है तो लोगों गूँगे नहीं रहना अच्छा नहीं लगता है शोभा नहीं देता है कब तक डरते रहेंगे ये मुठ्ठी भर लोगों से, इसलिए हमें “गैंग्स ऑफ चितरा” के फैज़ल बनना पड़ता है और कहना पड़ता है “एक ही तो जान है अल्लाह लेगा या मोहल्ला” जब चितरा में चमचागिरी और दलाली चरम सीमा पर थी, तब बग़ल के गाँव ठाड़ी का एक लड़का कोलियरी को बचाने की बात रहा था लूटने वालों के नाम गिना रहा था। मैं लिख भी इसलिए रहा हूँ ताकि मुझे दलाल चमचों में न गिना जाए बल्कि मुझे बागियों में शुमार किया जाए।

सारठ विधानसभा की राजनीती कैसे चितरा कोलियरी नियंत्रित करती है?

सारठ विधानसभा की पूरी राजनीति इस कोयले की काली कमाई से चलती है। ये सिर्फ़ खदान ही नहीं बल्कि नॉट छापने की मशीन है, और जिसके हाथ में ये मशीन होती है वो यहाँ का बादशाह है। अब जब तक यहाँ कोई फैज़ल पैदा नहीं होता है।

रामाधीर सिंह का साम्राज्य का अंत नहीं हो सकता। रामाधीर सिंह के इस ब्राम्हणवाद व पूंजीवाद के सामने सिस्टम रेंगने लगता है, वो बेबस व बेसहारा बनके बस तमाशा देखती है। कोलियरी से कौन कमाता है, किसे फायदा होता है, तो जवाब है बामनों को यानी सारठ का जो विधायक होता हैं, वही कोलियरी को नियंत्रित करता है।

पहले कोलियरी को लेकर इतनी समस्या नहीं होती थी। कारण पहले दो बामन नेता हुआ करते थे। माल का आसानी से बंटवारा हो जाता था, दोनों में एक विधायक होता था, वो अपनी जात भाई समझ कर ज्यादा हो हंगामा नहीं करता था। फ़िर दो से तीन अब चार नेता हो गए हैं बंटवारे में काफ़ी समस्या होने लगी, इसका असर भी अब कोलियरी पर होने लगा! सबको नेतागिरी करना है, चुनाव जीतना है, फॉर्च्यूनर दौड़ाना है। अब तो डीज़ल पैट्रोल भी महँगे हो गए है वोट की कीमत भी बढ़ गई ऊपर से चमचों को पालने का खर्चा भी बढ़ गया है।

chitra collery deoghar
Chitra Coal Mines

मौजूदा भाजपा विधायक रणधीर कुमार सिंह, पूर्व विधायक शशांक शेखर भोक्ता, पूर्व झामुमो प्रत्यासी भूपेन सिंह, व पूर्व विधायक चुन्ना सिंह वर्चस्व की लड़ाई इन्ही लोगों में आपस में होती है और भुगतना कोलियरी को पड़ता है। ये सभी बामन है कोई सेक्युलर है, कोई कम्युनल है, कोई और कुछ है। अब जब बामन आपस में लड़ेगा तो बामन ही जीतेगा कोई भी जीते इससे वहाँ के आम दलित-बहुजन पसमांदा आदिवासी को कोई फायदा नहीं होता है। बामनों का दबदबा इस क़दर है कि दूसरे जाति के लोगों को वहाँ भटकने भी नहीं देते हैं ज्यादा से ज्यादा वो कोयला ढो सकते हैं। खादान में मजदूरी कर सकते हैं, आम दलित/बहुजन पसमांदा आदिवासी कभी एक साथ मिलकर इनका विरोध नहीं करते है। इसके कई कारण है कभी बीच में धर्म/जाति आ जाती है तो कभी राजनीति।

इस मसले का तब तक हल नहीं हो सकता है जब तक सारठ का विधायक नहीं बदल जाता है जब तक दलित-बहुजन पसमांदा आदिवासी में से कोई विधायक नहीं बन जाता है। बाकि अभी ये दलाली और चमचागिरी में मस्त है इनसे क्रांति की कोई उम्मीद की नहीं जा सकती है।

किसी मे इतनी हिम्मत नहीं है कि इन रामाधीर बंधुओं के खिलाफ कोई आवाज़ उठा सके? मुझे उस दिन का इंतजार है जब कोई मेरे पास आके कहे विधायक जेपी सिंह को बीच चौराहे में कूट दिये?

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