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हमने बराबर की कुर्बानी दी झारखंड राज्य अलग करने में बाकि आदिवासी, कुड़मी व अन्य मूलवासी झारखंडी की तरह लेकिन मेरी पहचान इतिहासकरों ने कही न कही हाशिए पर रखा।
- शायद झारखंड एरिया ऑटोनोमस काउंसिल (JAAC) का निर्माण 1995 में नहीं होता
- झारखंड राज्य की माँग सबसे पहले एक पसमांदा जोल्हा – अंसारी ने की थी
- 1962 में जयपाल सिंह मुंडा के साथ मिलकर ज़हूर अली ने ‘जोल्हा-कोल्हा, भाई-भाई’ का नारा दिया।
रांची, झारखंड: झारखंड आंदोलन में शहीद हुए, शहीद अब्दुल वहाब अंसारी, शहीद कुतुबुद्दीन अंसारी, शहीद मुर्तुजा अंसारी, शहीद जुबैर अंसारी, शहीद सईद अंसारी इत्यादि झारखंडी क्रांतिकारियों को लोगों ने भुला दिया है। अगर ये क्रांतिकारी शहीद नहीं होते तो शायद झारखंड एरिया ऑटोनोमस काउंसिल (JAAC) का निर्माण 1995 में नहीं होता, और इतनी जल्दी झारखंड राज्य का गठन भी नहीं होता। लेकिन हमारे पास ठोस दस्तावेज़ मौजूद है हमने बराबर की कुर्बानी दी झारखंड राज्य अलग करने में बाकि आदिवासी, कुड़मी व अन्य मूलवासी झारखंडी की तरह।
झारखंड राज्य की माँग सबसे पहले एक पसमांदा जोल्हा – अंसारी ने की थी
जिसमें असमत अली का नाम प्रमुख हैं जिन्होंने 1912 में ही अंग्रेज़ हुकुमत से अलग झारखंड की माँग की थी। 1936 में मोमिन कांफ्रेंस ने भी अलग झारखंड राज्य के गठन का न सिर्फ़ प्रस्ताव पास किया, बल्कि 1937 में ठेबले उरांव के नेतृत्व में आदिवासी उन्नत समाज का खुलकर साथ दिया। आदिवासी महासभा के दस्तावेज़ों के अनुसार 1938 में तक़रीबन 7 लाख मुसलमान [अधिकतर जोल्हा-अंसारी] महासभा के साथ थे, जो झारखंड के आन्दोलन में हमेशा साथ खड़े रहें।
आज़ादी के बाद भी मोमिन कांफ्रेंस के अब्दुर्रज़्ज़ाक अंसारी और अमानत अली अंसारी इस पूरे आन्दोलन में जयपाल सिंह मुंडा के साथ खड़े रहें।
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1962 में जयपाल सिंह मुंडा के साथ मिलकर ज़हूर अली ने ‘जोल्हा-कोल्हा, भाई-भाई’ का नारा दिया।
1962 में जयपाल सिंह मुंडा के साथ कन्धा से कन्धा मिलकर आन्दोलन को आगे बढ़ने वाले ज़हूर अली ने ‘जोल्हा-कोल्हा, भाई-भाई’ का नारा दिया। [ जोल्हा – अंसारी और मुंडा भाई है] 1983 में दुमका में ‘झारखंड दिवस’ मनाने के जुर्म में प्रोफ़ेसर अबू तालिब अंसारी की गिरफ़्तारी हुई. वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता थे. 1989 में झामुमो (JMM) ने इन्हें केन्द्रीय समिति का सचिव बनाया गया. इसी साल राजीव गांधी ने ‘कमिटी ऑन झारखंड मेटर्स’ बनाया, जिसके तहत दिल्ली जाकर बातचीत करने वालों में प्रोफेसर अबू तालिब अंसारी भी शामिल थे।
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हमारी पहचान आज भी हाशिए पर है.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की लोग जब बात करते है तो उसमें बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन, निर्मल महतो, अरुण कुमार राय, शैलेंद्र महतो, टेकलाल महतो, सूरज मंडल इत्यादि का जिक्र होता है लेकिन प्रोफ़ेसर अबू तालिब अंसारी, हाजी हुसैन अंसारी और निजामुद्दीन अंसारी इत्यादि लोगों के नाम लोग अक्सर भूल जाते है,
उसी तरह ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) की जब लोग बात करते है तो उसमें निर्मल महतो, सूर्य सिंह बेसरा, प्रभाकर तिर्की, ललित महतो, मंगल सिंह बोबोंगा, इत्यादि का जिक्र होता है लेकिन नज़्म अंसारी, फारूक आज़म, जुबैर अहमद, खालिक अहमद, मोहम्मद फैज़ी अंसारी इत्यादि का नाम कहीं सुनने को नहीं मिलता है। कल जब खतियान व भाषा आंदोलन का जिक्र होगा, तो उसमें भी कहीं हमारी कुर्बानियों को लोग नज़रंदाज़ ना कर दें।
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Razaul Haq Ansari is a Pasmanda Activist from Deoghar Jharkhand, He works to upliftment for unprivileged lower castes among Muslims [ST, SC and OBC among Muslims]. He is associated with anti-caste and social justice movement since 2018.