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Pasmanda Muslim के लिए आर एस एस और भाजपा के विचारों में परिवर्तन क्यों? मनोहर कुमार यादव

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सांप सिर्फ केचूल ही छोड़ रहा है या बिष की त्याग भी कर रहा है ? (संदर्भ आर एस एस और भाजपा के विचारों में परिवर्तन)

आर एस एस और भाजपा के विचारों में परिवर्तन क्यों

लेखक: मनोहर कुमार यादव
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समाजवादी पार्टी झारखंड


National News: विनायक दामोदर सावरकर जेल जाने के पूर्व 1908 तक पूर्ण रूप से सर्वधर्म समभाव और मिलजुल कर देश को आजाद कराने वाले नीति पर चलते थे यहां तक की भारत के अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर के संघर्षों के कायल भी थे।

उनके आजादी की टोली में मुस्लिम सहित सभी धर्मों और सभी जाति के लोग थे सावरकर ने अपनी किताब 1857 एक स्वतंत्रता संग्राम में आजादी की लड़ाई में लिखा है कि मौलवी और पुजारी अपने अपने धार्मिक कार्यक्रमों में भी आजादी की लिए लोगों को प्रेरित करते थे ब्राह्मण और शूद्र का भेद मिट चुका था।

क्यों अंग्रेजों से माफीनामा लिखकर जेल से रिहा का आग्रह किया?

लेकिन अंग्रेज अधिकारी की हत्या में सहभागिता के कारण आजीवन कारावास की सजा भुगतने के क्रम में उनका मन परिवर्तित हो गया और अंग्रेजों से 6 बार माफीनामा लिखकर जेल से रिहा कर देने का आग्रह किया और यह अंग्रेजों को विश्वास दिलाया कि आपके लिए जितना जेल में रहकर उपयोगी नहीं हूं उससे ज्यादा मैं जेल से बाहर रहकर उपयोगी बनूंगा और आपका वफादार रहूंगा।

अंग्रेजी सरकार ने माफी देते सावरकर को जेल से रिहा कर दिया गया और सम्प्रदायीक माहौल बिगाड़ने के लिए अंग्रेजी सरकार ने सावरकर को 60 रू प्रति माह पेंशन के रुप मे देने लगी।

सावरकर देश के एकमात्र हिंदूवादी नेता बनना चाहते थे

वहीं से सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व की कट्टरपंथी विचारधारा फैलाना शुरू किया और मुस्लिमों को दोयम दर्जे की नागरिकता देने की बात करनी शुरू कर दी।

सावरकर देश के एकमात्र हिंदूवादी नेता बनना चाहते थे लेकिन महाराष्ट्र के कुछ और ब्राह्मण नेता और हिंदूओं का झंडा वरदार बनने वालों के बिच मतभिन्नता शुरू हो गई जिसके फलस्वरूप 27 सितंबर 1925 विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना की गई।

हिंदू महासभा और रामराज परिषद सहित अन्य कई राजनीतिक दल आजादी के पहले से ही थे लेकिन इन सबके ऊपर आर एस एस का पूर्ण नियंत्रण नहीं हो पा रहा था जिसके कारण आर एस एस के नेता ज्यादा चिंतित रहते थे।

आजादी के बाद 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जघन्य हत्या ने r.s.s. को देश के लोगों के नजरों में गिरा दिया यहां तक की देश के तत्कालीन गृह मंत्री और सूचना प्रसारण मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने r.s.s. पर प्रतिबंध लगाया उसी समय से आर एस एस ने कथनी और करनी में अंतर रखना शुरू कर दिया जो भरोसा सरदार पटेल को आर एस एस ने दिया था कि राष्ट्रीय ध्वज को मानूंगा भारत के संविधान को r.s.s. मानेगी।

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आरएसएस तिरंगा विरोधी है
Twitter [AISA]

महात्मा गांधी के हत्या और तिरंगे का अपमान

लेकिन महात्मा गांधी के हत्या के दिन तिरंगा झंडा को खुशी में झूमते हुए आर एस एस के अनुयायियों ने पैरों तले रौदेने का काम किया। आर एस एस का स्थापना काल से ही मानना था कि भारत के राष्ट्रध्वज भगवा हो भारत का संविधान मनुस्मृति हो आर एस एस ने अपने अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गेनाइजर और हिंदी मुखपत्र पांचजन्य में हमेशा यह प्रकाशित करता रहा है कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज भगवा हो और संविधान मनुस्मृति हो।

26 जनवरी 2001 के दिन राष्ट्रप्रेमी दल के तीन युवकों ने नागपुर के रेशमी बाग स्थित आरएसए मुख्यालय में तिरंगे झंडे को फहराने की कोशिश की जिसके कारण तीनों युवकों को पकड़ कर जेल भेजवा दिया गया और तीनों युवक 12 बर्षौं तक जेल में रहे मुकदमा संख्या 176/2001 दर्ज हुआ जिसमें यह आरोप था की तीनों युवकों ने जबरन r. मुख्यालय में तिरंगा फहराने की कोशिश किया तीनों युवकों के नाम थे बाबा मेढे, रमेश कालवे और दिलीप चटवानी।

जनसंघ राजनीतिक पार्टी

हिंदूवादी कई राजनीतिक दलों के उपस्थिति के बावजूद आर एस एस ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रथम मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री रहने वाले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में 23 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में जनसंघ के नाम से राजनीतिक पार्टी की स्थापना कराई।

जनता पार्टी

आपातकाल के बाद चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में अपने विचारों को बदलते हुए तत्कालीन स्वार्थ बस आर एस एस ने जनसंघ का विलय करा दिया मोरारजी सरकार के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में जनसंघ के मंत्री भी शामिल हुए लेकिन उनका आर एस एस के कार्यक्रमों में जाना लगातार बना रहा जिसका विरोध समाजवादी नेता राजनारायण ने किया था जिसके परिणाम स्वरूप आर एस एस ने मोरारजी देसाई से समर्थन वापस लिया और 1979 में सरकार गिर गई।

भारतीय जनता पार्टी

आर एस एस फिर से केचुल का त्याग करते हुए बिष का विस्तार करते हुए 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के नाम से राजनीतिक दल बनाया, 1984 के इंदिरा लहर में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई और मात्र 2 सांसद ही जीता पाए आर एस एस चिंताओं में डूबी हुई रहने लगी लेकिन फिर एक बार अपनी बिष को अंदर छुपाए हुए केचुल छोड़ा और 1989 के चुनाव में राजनीतिक पहचान स्थापित करने के लिए जनता दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा और लगभग 88 लोकसभा सांसद जीता लिए,

जनता दल

जनता दल के घोषणा के अनुरूप बी पी सिंह सरकार ने चीर प्रतिक्षित जनाकांक्षाओं के अनुरूप पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण लागू करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपना बिष उगला और सरकार को गिरा कर रथ यात्रा शुरू कराया इसके बाद भाजपा के माध्यम से हमेशा यह बहस का मुद्दा बनाती रही कि संविधान बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने ही नहीं बनाया है अन्य कई लोगों ने भी मिलकर संविधान बनाया यानी कि बाबा साहब अंबेडकर के उपलब्धियों को जमीनदोज करना।

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RSS ने बाबासाहेब आंबेडकर को महिमामंडित क्यों शुरू कराया

फिर भाजपा के माध्यम से तिरंगा यात्रा निकलवाना बाबासाहेब आंबेडकर को महिमामंडित करना r.s.s. ने शुरू कराया और केचुल छोड़ते हुए लोगों को एहसास दिलाने का प्रयास किया कि भाजपा और आर एस एस अब बदल रही है बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव के कुछ दिनों पूर्व मोहन भागवत ने यह मुद्दा छेड़ा कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए वैसे तो पहले से ही आरक्षण की समीक्षा और संविधान की समीक्षा आर एस एस की मुख्य मांग रही है लेकिन बाजपेयी सरकार मे 42 दलों के गठबंधन सरकार अपनी केचुल छोड़ते हुए r.s.s. ने बनवाई और उसमें दलित पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं के नुमाइंदे को भी शामिल कराई ।

आर एस एस और भाजपा के विचारों में परिवर्तन क्यों?

अब पूरी तरह से RSS को समझ में आया गया कि अपनी बिष को कुछ समय के लिए अंदर खाने में दबाए रहो और केचुल छोड़कर यह लोगों में एहसास कराओ कि आरएसएस भेदभाव, सामाजिक असमानता और सर्व धर्म समभाव में विश्वास करने लगी है यहां तक की मोहन भागवत भी कहने लगे हैं कि भारत में रहने वाले सभी हिंदू हैं। आरएसएस के स्थापना से लेकर आज तक यानी कि 98 वर्षों मे 6 सर संघचालक हुए जिसमें पांच ब्राह्मण और एक उत्तर भारतीय राजपुत जाति के रज्जू भैया।

इस बिच एसटी, एससी और ओबीसी के नेताओं को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आरएसएस बनवा रही है, राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी बनवा रही है लेकिन आरएसएस का प्रमुख नही, इसका मतलब साफ है कि आरएसएस प्रमुख का पद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद से भी बड़ा है।

मंडल कमीशन की अनुशंसाओं में नरेंद्र मोदी जी की जाति जो गुजरात की तेली समुदाय में घाची जाती है को फार्वर्ड कास्ट में रखा गया था लेकिन बाद में दुर्गामी राजनीति के लिए नरेंद्र मोदी की जाति को फारवर्ड कास्ट से पिछड़ी जाति में शामिल कराया गया और देश के पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में प्रचारित किया जाने लगा।

जिसे कल कपड़ो से पहचानने की बात करते थे आज मुसलमानों से प्यार क्यों?

अब आर एस एस अपने सिद्धांतों के विपरीत मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मौलवियों के बीच जाने लगे और भाजपा के साथ जुड़ने के के लिए प्रेरित करने लगे केचुल छोड़ने की प्रकाष्ठा तो देखिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में दक्षिण भारत की तेलंगना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेंद्र मोदी जी के श्री मुख से ही यह बुलवाया गया कि भाजपा के कार्यकर्ताओं को जो मुस्लिम समुदाय में पसमांदा यानी कि पिछड़े हुए व्यक्ति हैं उनके पास जाना चाहिए और उनको यह एहसास दिलाया जाना चाहिए कि भाजपा आपके तरक्की और विकास के लिए काम करेगी जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने उत्तर प्रदेश के कई चुनाव सभाओं में यह कहा कि लोगों की पहचान कपड़ों से ही हो जाती है शमशान और कब्रस्तान की चर्चा पूरे चुनाव तक मोदी जी करते रहे उसके बाद अब इस तरह का विचार परिवर्तन क्या यह प्रमाणित नहीं कर रही है की आर एस एस और भाजपा सिर्फ केचुल ही छोड़ रही है अपने अंदर के बिष का त्याग नहीं कर रही है ?

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