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विरोध महारैली – झारखंड क्रिश्चियन यूथ एसोसिएशन के तत्वाधान में दिनांक 15 जनवरी 2023 को रांँची के गोस्सनर थियोलॉजिकल कॉलेज मैदान से मेन रोड होते हुए मोराबादी तक विरोध मार्च निकाला गया।
Ranchi, Jharkhand:- विरोध मार्च के इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में ईसाई आदिवासी, और दूसरे सरना , हिन्दू , सिख , मुस्लिम समाज के लोग भी उपस्थित थे। जिसमें विशेष रुप से सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कच्छप , सुजीत कुजूर और पंकज तिर्की शामिल हुए और अपनी बातों को रखा मिडिया बन्धुओं के समक्ष।
प्रवीण कच्छप ने कहा चर्चों में तोड़-फोड़ की गई, चर्चों से मसीही लोगों को भगाया गया।
प्रवीण कच्छप ने कहा कि क्रिसमस के दौरान छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ जिलों में ईसाई समुदाय को चिह्नित किया गया। असामाजिक तत्वों द्वारा धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाकर ईसाई भाई-बहनों के साथ मारपीट की गई और अभद्र व्यवहार किया गया। चर्चों में तोड़-फोड़ की गई। चर्चों से मसीही लोगों को भगाया गया। यह बेहद निंदनीय है।
महारैली में सम्मिलित होकर अपनी बातों को रखना लोकतंत्रिक अधिकार और इस तरह से छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के विभिन्न जिलों में आदिवासी ईसाई भाई-बहनों के साथ मारपीट वा चर्चो में तोड़फोड़ करना बेहद ही निंदनीय है।यह देश संविधान से चलेगा ना कि किसी का एजेंडा से, संविधान का आर्टिकल 25 का पालन करो, जियो और जीने दो.!
संवैधानिक हितों और लोकतान्त्रिक अधिकार का हनन करने वाले ताकतों का इसी मजबूती से विरोध करने के लिए हम सबों को साथ खड़ा होना होगा।
पंकज तिर्की ने कहा कि कौन है ये लोग ?
क्या ये लोग संविधान से बड़े हैं ?
क्या इन्होंने संविधान को पढ़ा है ?
क्या यह लोग आदिवासियों के हितैषी हैं ?
इस तरह के विचारधारा के पीछे इनकी मनसा क्या है ?
आदिवासी कोई जाति या धर्म नही है जो बदला जा सके इसके लिए उन्हें आदिवासी परिवार में जन्म लेना होगा।
जिस तरह मेमोरंडम ऑफ सेंसेक्स ऑफ इंडिया में स्पष्ट लिखा है :-
ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाला ब्राह्मण,
वैश्य कुल में जन्म लेने वाला वैश्य,
क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाला क्षत्रिय है।
वैसे ही आदिवासी कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति आदिवासी है।
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आदिवासियों को आखिर क्यों विभाजित करना चाहते हैं ये लोग ?
सुजीत कुजूर ने कहा कि यह स्पष्ट है कि आदिवासी ही इस देश का मालिक है ।
अंग्रेजों की दलाली करते हुए एक चीज अच्छी तरह इन्होंने सीखा है “फुट डालो और राज करो।”
इन्होंने बड़े कूटनीतिक तरीके से आदिवासियों के मध्य विभिन्न संगठनों के माध्यम से अपनी पैठ बनाई और गलत तरीके से आदिवासीयों को परिभाषित करना आरम्भ किया ।
01. क्या सरना – सनातन एक है ।
- जबकि आदिवासियों का सनातन धर्म से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है , यह अलग बात है कि बहुत से आदिवासी समाज से जुड़े लोग हिन्दू , मुस्लिम , क्रिस्चियन , सिख , बौद्ध , जैन व नास्तिक हो गए है क्योंकि संविधान उन्हें राइट्स ऑफ रिलीज़न का अधिकार देता है और इसके पीछे 1951 के जनगणना में षड्यंत्र के तहत आदिवासी कोड का हटा देना भी है ।
02. वनवासी शब्दो का सम्बोधन ।
- शब्दों के बदलने से स्वतः ही परिभाषा भी बदल जाता है ।
जैसे आदिवासी अर्थात आदि काल से निवास करने वाला । वही वनवासी अर्थात वन में निवास करने वाला ।
यह भूल जाते है कि मोहनजोदड़ो व हड़प्पा तथा सिंधू की सभ्यता हम आदिवासियों की विरासत है ।
देश आजादी के उपरांत 550 रियासतों को एक किया गया , जिसमे आधी से अधिक रियासत आदिवासियों की थी ।
जो लोग आदिवासियों को वनवासी कहते है वह सभी दिग्भ्रमित लोग हैं। ये लोग आदिवासीयत को जानते ही नहीं हैं । यह लोग अपने आका / अन्नदाता के लिए सक्रिय रहते हैं गुलाम की तरह ।
लगातार आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट देखने को मिल रहा है
इसतरह के एजेंडे को चलाने के पीछे का मूल मकसद आदिवासियों के जनसंख्या को प्रभावित करना है जैसा कि पहले भी किया जा चुका है ।
1941 में आदिवासियों की 12% जनसंख्या थी, 1951 में 0% दर्शाया गया और यूनाइटेड नेशन में यहाँ तक कह दिया गया कि भारत मे आदिवासी है ही नही यहाँ तो अनुसूचित जन जाति रहते हैं । आज की स्तिथि में आदिवासी 8.5% है।
आपका समर्थन अथवा विरोध हम आदिवासियों के भविष्य को तैयार करेगा
मैं प्रवीण कच्छप व्यक्तिगत तौर से डिलिस्टिंग का विरोध करता हूँ क्योकि इस तरह के चीजे आदिवासियों के लिए हानिकारक सिद्ध होंगे। आपका समर्थन अथवा विरोध हम आदिवासियों के भविष्य को तैयार करेगा, नहीं जागे तो जिंदगी भर अफसोस के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा ।
आदिवासी हित में हम सभी को चिंतन की आवश्यकता है …चाहे वह ईसाई आदिवासी हो या सरना आदिवासी। क्युंकी हमें जाति और धर्म मे अंतर समझने की आवश्यकता है जाति और धर्म में अंतर है ।और यहां सरना धर्म के बारे में बोला जा रहा है ।और सरना एक धर्म है और उसी का कोड मांगा जा रहा है ।जैसे ईसाई, सिख, हिंदू ,बौद्ध आदि का अपना कोड है या कॉलम उसी तरह यहां पर सरना धर्म का कोड मांगा जा रहा है।
आदिवासी एक जाति है धर्म नहीं। इसलिए आदिवासी सरना धर्म भी अपना सकता है,ईसाई धर्म भी अपना सकता है,हिंदू धर्म भी अपना सकता है और कोई भी अपनी इच्छा अनुसार अपना धर्म अपना सकता है।
इसका भारतीय संविधान की धारा 25 भी हमें यह अधिकार देती है…..कि हम अपने मौलिक अधिकारों की संरक्षण कर सके।
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इन मुद्दों पर कई वक्ताओ ने मुख्य रूप से सभा को संबोधित भी किया ।।
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Praween kachhap is an energetic youth social activist from capital of Jharkhand. He always stands with society and social justice. Social justice is his main Moto. “माटी-अधिकार की लड़ाई जारी रहेगी।”