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Jharkhand News: क्या है पारसनाथ विवाद? क्यों अदिवासी संगठनों ने छेड़ दिया है उलगुलान?

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10 जनवरी और 15 जनवरी को लगेगा पारसनाथ पहाड़ पर आदिवासियों जमावड़ा! मुलवासी नेता व उनके संगठन मांग कर रहे है कि उनके भगवान मरांग बुरु का निवास स्थान है पारसनाथ का पहाड़ जहाँ वे सदियों से पशुओं की बलि व मदिरापान करते आ रहे है

santhal protect in parasnath hill
संथाल और सभी अदिवासी संगठनों ने छेड़ दिया है उलगुलान | Parasnath Hill Santhal Protest

मधुबन, गिरिडीह | इन दिनों पारसनाथ पहाड़ काफी सुर्खियों में है कारण है केंद्र व झारखण्ड सरकार ने पर्यटन स्थल के रूप में पारसनाथ पहाड़ को घोषित किया है। इसके विरोध में जैन धर्मावलम्बी देश भर में प्रदर्शन कर रहे है उनकी मांग है कि अगर यह पारसनाथ पहाड़ क्षेत्र पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगी तो आस पास नये नए होटल रेस्ट्रोरेन्ट व शराब की दुकाने की खुलेगी जिससे वहाँ पर आने वाले लोग मदिरा पान व मांस का सेवन करेंगे जो उनके धर्म के अनुसार वर्जित है। और जैन श्रद्धालुओं को परेशानी होगी, जैनियों के अनुसार इसे धार्मिक स्थल का मान्यता मिले जिससे उनकी परंपराए व धार्मिक पूजा पद्दति सुरक्षित रहे।

जबकि आदिवासी, मुलवासी नेता व उनके संगठन मांग कर रहे है कि उनके भगवान मरांग बुरु का निवास स्थान है। पारसनाथ का पहाड़ जहाँ वे सदियों से पशुओं की बलि व मदिरापान करते आ रहे है वे लकड़ी, पत्ते जड़ी बूटी व अन्य सामान पारसनाथ पहाड़ से लाते है उनके लिए पारसनाथ का पहाड़ उनके जीवन यापन का साधन है। जहाँ पर सम्मेद शिखर (पहाड़ की उच्च चोटी) जैनियों के मंदिर है उस स्थान तक ही जैनियों के नियम लागु होने चाहिए, समूचा पहाड़ जैनियों को धर्म के नाम पर नहीं मिलना चाहिए, कुछ वहाँ के स्थानीय आदिदिवासी लोग ये भी बता रहे है कि जैन धर्म के लोगों ने आदिवासियों के साथ मार पीट भी की है उन्हें जंगलो में जाने नहीं दिया जाता है, आदिवासी ये भी कह रहे है उनके भगवान मरांग बुरु के पूजा स्थान को भी नुकसान पहुँचाया गया है।

झारखंड भर के सदान व मूलवासी संगठनों ने भी आदिवासियों व उनके संगठनों का समर्थन किया है। उनकी भी मांग है धर्म के नाम पर उन्हें 64 Sq. किलोमीटर की पूरी भू भाग नहीं दी जा सकती है। झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के नेता जयराम महतो ने कहा “आदिवासी मूलवासी को नक्सली के नाम पर उनकी हत्या तक की जाती है जबकि सरकार को उनकी मांगे व बातें सुननी चाहिए? वे किन परिस्तिथियों में नक्सली बने है ये बातें दुनिया को मालूम होनी चाहिए? उन्हें भी सुधरने का मौक़ा मिलना चाहिए।” 

स्थानीय स्तर पर भी आदिवासी मूलवासी व जैन धर्मालम्बियों के बीच वार्ता भी हो रही है गिरिडीह जिले के उपायुक्त अमन प्रियेश लकड़ा इसमें अहम भूमिका निभा रहे है व माहौल को शांत करने की कोशिश कर रहे है।

कुल मिलाकर दोनों पक्षों की मांगे अब केंद्र व राज्य सरकार तक पहुँच रही है अब निर्णय दोनों सरकारों को लेना है. राजनितिक दल एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है. एक दुसरे पर केवल बयानबाजी कर कर रहे है कोई ठोस निर्णय नही लिया जा रहा है।

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