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पारसनाथ मधुबन, पीरटांड़ गिरिडीह – दिनांक 10.01.2023 को मारांग बुरू संवता सुसर वैसी एवं अन्य आदिवासी समाजिक संगठनों द्वारा मधुबन, पारसनाथ में रैली एवं जनसभा का आयोजन किया गया था। इस जनसभा…….
- “पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का पारंपरिक धर्म स्थल है।” रतन सिंह मुण्डा
- “धर्म के नाम पर पारसनाथ पहाड़ छोड़ने को कहा जा रहा है।” प्रवीण कच्छप
पारसनाथ, मधुबन, पीरटांड़ गिरिडीह – दिनांक 10.01.2023 को मारांग बुरू संवता सुसर वैसी एवं अन्य आदिवासी समाजिक संगठनों द्वारा मधुबन, पारसनाथ में रैली एवं जनसभा का आयोजन किया गया था। इस जनसभा में राज्य और देश भर से आदिवासी जनप्रतिनिधि शामिल हुए। जिसमें तमाड़, रांँची के आदिवासी समाजिक अगुवा रतन सिंह मुण्डा एवं रांँची के जुझारू युवा समाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कच्छप अतिथि के रूप में शामिल हुए।
पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का पारंपरिक धर्म स्थल है
अपने सम्बोधन में रतन सिंह मुण्डा ने कहा कि पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का पारंपरिक धर्म स्थल है जो आज से नहीं बल्कि अति प्राचीन काल से है। जैन धर्मावलंबियों को हमारे पुरखे शरण दिये थे। ये शरणार्थी लोग आज मूल आदिवासी को ही मारांग बुरू की पूजा अर्चना करने से रोक लगाने की मांग कर रहे हैं जो गैरकानूनी है। हजारीबाग गजट नोटिफिकेशन चिख चिख के बोल रहा है कि पारसनाथ पहाड़ मारांग बुरू पूजा स्थल के नाम से आदिवासियों के लिए आरक्षित है,जो यहांँ के मूल रैयत लोग का है। श्री मुण्डा ने कहा हम सभी समुदायों के धर्म का सम्मान करते हैं इसका मतलब ये नहीं कि अपनी धार्मिक पहचान को मिटा कर दुसरे के धार्मिक भावनाओं को सहेजते चले जाएं।
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अपने हिस्से की लड़ाई खुद लड़नी होगी
युवा सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कच्छप ने कहा आज हमें धर्म के नाम पर पारसनाथ पहाड़ छोड़ने को कहा जा रहा है। कल पूरे राज्य के जल-जंगल-जमीन को छोड़ने की बात करेंगे। ये जैन धर्मावलंबी, ये कत्तई बर्दाश्त नहीं होगा। उन्हें हमारे पूर्वजों ने पूजा अर्चना के लिए मंदिर निर्माण की जगह सुनिश्चित कर दिए हैं के बावजूद अब हमारे ही जमीन पर हमें ही प्रवेश पर पाबंदी की मांँग करना सरासर गलत है।
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श्री कच्छप ने युवाओं से अपील करते हुए कहा आज युवाओं को अपने अपने हिस्से की लड़ाई खुद लड़नी होगी, तभी हमारी धर्म संस्कृति बचेगी, अन्यथा जैन अतिक्रमणकारियों द्वारा जबरन छिना जाएगा। श्री कच्छप ने आक्रोशित शब्दों में कहा कि पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का है आदिवासियों का ही रहेगा जैनियों को जो पूर्वजों द्वारा मिला उससे अधिक एक सुई भी गाड़ने की जमीन नहीं दी जाएगी पहाड़ तो दूर की बात है।
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