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जैन के द्वारा सम्मेद शिखर(पारसनाथ पहाड़) पर दावे को लेकर मंगलवार 10 जनवरी को आदिवासी समाज प्रदर्शन किया। पूरे पारसनाथ, मधुबन इलाके में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। दुबारा 15 जनवरी को हजारों झारखंड के मूलवासी, आदिवासियों और कुडमी करेंगे जैन समाज का विरोध प्रदर्शन।
मधुबन, पारसनाथ, गिरिडीह: झारखंड के आदिवासी समाज ने सम्मेद शिखर पर दावे को लेकर मंगलवार को प्रदर्शन किया। पूरे पारसनाथ के इलाकों में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात में किया गया है। दुबारा 15 जनवरी को हजारों झारखंड के मूलवासी, आदिवासियों और कुडमी करेंगे जैन समाज का विरोध प्रदर्शन करेंगे, जिसमे संथाल से लेकर पुरे झारखण्ड के आदिवासी समाजिक अगुवा और जुझारू युवा समाजिक कार्यकर्त्ता लेंगे भाग।
संथाल समाज के लोग मंगलवार 10 जनवरी को हाथों में तीर-धनुष लेकर सड़कों पर उतरे थे। पारसनाथ पहाड़ के आसपास की दुकानों को पुलिस ने बंद करवा दिया था। नारेबाजी करते हुए लोग सभा स्थल पर पहुचे थे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए संथाल स्थानीय विधायक सुदीप्त सोनू ने कहा झारखंड आज बाहरियों के द्वारा लूटा जा रहा है, सूत्रों की माने तो 15 जनवरी को पारसनाथ पहाड़ पर मूलवासी आदिवासी और कुडमी समुदाय के लोग पूजा कर फुटबॉल ग्राउंड में जमा होंगे और वहां सभा करेंगे।
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मरांग बुरु पर आदिवासियों ने किया दावा
मूलवासी, कुडमी और आदिवासी समुदाय ने दावा किया है कि पूरा पारसनाथ पहाड़ (मरांग बुरु) झारखंडियों का है। यहां वे सफेद मुर्गे की बलि हर साल पूजा में देते हैं। मंगलवार को इसी दावे को लेकर जनसभा का आयोजन किया गया था। इस जनसभा में कई राज्यों से संथाल समाज के कार्यकर्ता और लोग शामिल हुए थे, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और छतीसगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता और लोगों का भरी भीड़ देखने को मिला। फोन पर हुई बातचीत में अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने कहा, हम कोई आश्वासन नहीं चाहते, हम सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र और राज्य सरकार से ठोस कागजी की कार्रवाई चाहते हैं। लंबे समय से चल रहा है हमलोग का विरोध प्रदर्शन। हम अपने अधिकार और हक़ के लिए लड़ना जानते हैं।
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सरकार की तरफ से नहीं आयी कोई प्रतिक्रिया
पारसनाथ विवाद पर अभी सरकार की और से कोई आधिकारिक और ठोस बयान सामने नहीं आया है। तमाड़, रांँची के आदिवासी समाजिक अगुवा रतन सिंह मुण्डा ने कहा पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का पारंपरिक धर्म स्थल है। जो आज से नहीं बल्कि अति प्राचीन काल से है।
रांची के युवा सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कच्छप ने कहा मीडिया से बात करते हुए बोले आज हमें धर्म के नाम पर पारसनाथ पहाड़ को छोड़ने को कहा जा रहा है। कल पूरे झारखंड राज्य के जल-जंगल-जमीन को छोड़ने की बात करेंगे।
आदिवासियों ने कहा हमारी आस्था का भी हो सम्मान
हम जिला प्रशासन या सरकार की पहल को अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद ने स्वागत किया हैं। जब तक राज्य और केंद्र सरकार स्पष्ट फैसला नहीं लेती, तब तक हम संथाल के लोग आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। हम आदिवासियों का जो अधिकार हैं, उन्हें हम किसी भी हासिल करके रहेंगे। हम देखेंगे की सरकार हमारी अपनी हिस्सेदारी दे रही है या नहीं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी अपने चिट्ठी में जैन समाज के लिए इस महत्व के संबंध में भी केंद्र को लिखा, जबकि हमारी अपनी धार्मिक भावनाएं भी मरांग बुरु से जुड़ी हैं।
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