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“जातीय जनगणना कराना वर्तमान समय की पुकार है, सभी मूलवासी बहुजन और पसमांदा समाज और झारखंड के कुडमी और आदिवासी समाज को भी जातीय जनगणना में एक आवाज बनकर सरकार से मांग करनी चाहिए।” AIPMM अध्यक्ष डा. कलीम अंसारी
- ग्रामीण भारत मे लगभग 51.4 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूर है
- इंद्रा गांधी की गरीबी दुर करने की नारा भी कहीं खो गई
गिरिडीह, झारखंड | जातीय जनगणना से प्राप्त सामाजिक, आर्थिक नतीजे देश और समाज को की ऐसी पहलुओं का स्वागत करायेंगे जिनसे अभी तक हम अनभिज्ञ है बीते आठ दशकों हम गरीबो, बेरोजगारी खत्म करने का नारा सुनते आ रहे हे है इंद्रा गांधी की गरीबी दुर करने की नारा भी कहीं खो गई . सभी सरकारी सरगर्मी बेरोजगारी खत्म करने की लुभवाना नागरिक सुनते आ रहे है।
इसके ठीक उल्ट कुछ जातियां व वर्गो के बीच असमानता की खाई चोरी होती जारी है। कई अनुसंधान और अध्यन बताते कि 10 प्रतिशत से भी कम कई अबादी के प्रभुत्वशाली वर्गो ने देशभर के लगभग 90 प्रतिशत संसाधनो पर कब्जा किये हुए है, इन समुदायों का एक बडा वर्ग न सिर्फ राज्य की नीतियो को जनोनयन मुख होने से रोकता है बल्कि जातीय जनगणना जैसे महत्वपूर्ण विषयो को भी पूर्वाग्रह के रूप मे मे देखते है।
बहुत से पढ़े-लिखे लोग या सम्पन्न वर्ग के लोगो से सुनने मे आता है कि जातिगत जनगणना आपस मे उन्माद फैलायेगा ये उनकी उनकी उदासीन नजरिया से देखने के सामान है।
आज व्यापर के नीति-निर्माण तक पहले आंकडे व प्रमाण मांगे जाते है, ग्रामीण भारत मे लगभग 51.4 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूर है, गांवो में, 56.25 प्रतिशत भूमिहीन है । क्या सरकार की दायित्व नहीं है कि उनकी सही हालातो की सही जानकारी लें ।
गरीबी असमानता के संदर्भ मे सामाजिक पृष्ठ भूमि की पड़ताल जातीय जनगणना कैसे उन्माद का जन्म देगा? सारे अध्ययन अनुसंधान और अनुभव बताते है पिछड़ी दलित पसमांदा जातियो मे गरीबी एक अभिशाप है जिसकी सही आंकडा जातिगत गणना ही से आ सकती है, इसके साथ डॉ कलीम अंसारी अध्यक्ष ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (झारखंड) ने ये भी कहा की वो झारखंड सरकार से मांग करती है जल्द से जल्द बिहार के तर्ज पर राज्य में जातीय जनगणना कराये।
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