आज पसमांदा मुसलमानों के महानायक, महान स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, बाबा-ए-क़ौम अब्दुल क़य्यूम अंसारी जी 52वीं की पुण्यतिथि है।
![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 1 abdul quiyyum ansari freedom fighter](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/abdul-quiyyum-ansari-freedom-fighter.jpg)
- मोमिन आंदोलन और अब्दुल क़य्यूम अंसारी के साथ न्याय नहीं किया।
- अब्दुल क़य्यूम अंसारी चुनावी राजनीति मे कैसे आए?
- अब्दुल क़य्यूम अंसारी से मोहम्मद अली जिन्नाह क्यों नाराज थे?
1946 में अब्दुल क़य्यूम अंसारी जी ने मोहम्मद अली जिन्नाह के द्विराष्ट्र सिद्धान्त व मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक नीति की खुली मुख़ालफत करके ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेस के झंडे के नीचे विधान सभा की 6 सीटे जीत कर जिन्नाह को करारा जवाब दिया था।
(1 जुलाई 1905 – 18 जनवरी 1973)
एक सैय्यद साहब ने ट्विटर पर लिखा अब्दुल क़य्यूम अंसारी महान नेता व स्वतंत्रता सेनानी थे अफसोस है कुछ लोगों ने उसे एक बिरादरी का नेता बना दिया।
![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 2 Abdul Quiyum Ansari Postage Stamp from Government of India in 2005](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/Abdul-Kayyum-ansari-postal-card.jpg)
हम पुछते है किसने उसे एक बिरादरी का नेता बना दिया है?
आप भी उनको याद कीजिए अपने कार्यकर्मो में उन्हें जगह दीजिए उनके किये कार्य आज़ादी में दिए गए योगदान लोगों को बताइये उनपर किताबें भी लिखिए अकादेमी में भी जगह दीजिए लेकिन ऐसा आप नहीं करेंगे क्योंकि अशराफिया को क़य्यूम अंसारी साहब कभी कुबूल थे नहीं और ना आज है ना होगा। क्योंकि आपको ये लिखना कभी पसंद नहीं होगा के अशराफ लीडरों ने उन्हें ये कह कर मज़ाक उड़ाया के अब जुलाहे भी एमएलए बनने का ख्वाब देख रहे है। आपको ये लिखना पसंद नहीं होगा कि मुस्लिम लीग के उम्मीदवार के खिलाफ मोमिन कॉन्फ्रेंस ने चुनाव लड़ा और चुनाव में हराया भी।
जैसे ही कुछ मुस्लिम लीगी नेता गांधी टोपी पहनकर कांग्रेसी बने उनलोगों ने हमेशा अब्दुल क़य्यूम अंसारी के खिलाफ षडयंत्र करते रहे उन्हें लगातार कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे। कांग्रेस ने जब उन्हें मंत्री बनाने की कोशिश की तो वहाँ भी उनका विरोध करते रहे।
![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 3 महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/abdul-quiyum-ansari-cycle-march.jpg)
दरअसल अशराफिया की ये साज़िश है के क़य्यूम अंसारी साहब को एक बिरादरी के नेता के तक सीमित रखा जाए। हकीकत ये क़य्यूम अंसारी साहब को सभी पसमांदा बिरादरियों ने नेता मान लिया था जमीयतुल मोमिनीन के साथ जमीयतुल कुरैश,जमीयतुल राईन,जमीयतुल मंसूर इत्यादि सभी ने उनका साथ दिया था। उस वक़्त भी अशराफिया सियासतदान कहा करते थे क़य्यूम अंसारी ने त्रिवेणी संघ बना लिए है जोलहा कुंजड़ा धुनिया।
अशराफ पहले भी मानते थे कि क़य्यूम अंसारी साहब पसमांदा मुसलमानों के नेता है और आज भी मानते है लेकिन ये बात का इज़हार कैसे करे, क्योंकि उनकी राजनीति ख़तरे में आ जायेगी जो मुसलमानों के नाम पर चल रही है जिसका फायदा सिर्फ उनके अशराफ तबके को हो रहा है।
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![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 4 महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/Abdul-Quiyum-Ansari.jpg)
अब्दुल क़य्यूम अंसारी चुनावी राजनीति मे कैसे आए?
बक़ौल खालिद अनवर अंसारी (अब्दुल कय्यूम अंसारी के बड़े पुत्र ) उन्होने अब्बा से एक बार पूछा कि वह चुनावी राजनीति मे कैसे आए?
उन्होने बताया कि 1938 मे पटना सिटी क्षेत्र की सीट के लिए उपचुनाव होने वाला था उन्होने सोचा क्यों न इस सीट से अपनी किस्मत आजमाई जाए इस सीट के लिए उम्मीदवार तय करने हेतु बाहर से कई मुस्लिम लीग के नेता भी आए थे स्थानीय नेता तो थे ही पटना सिटी के नवाब हसन के घर पर प्रत्याशियों से इसके लिए दरख्वास्त ली जा रही थी वह भी अपनी दरख्वास्त देने वहाँ गये थे दरख्वास्त जमा कर अभी वह दरवाजे तक लोटे ही थे कि अंदर से कहकहे के साथ आवाज़ आई कि अब जुलाहे भी एमएलए बनने का ख्वाब देखने लगे इतना सुनना था कि वह दरवाजे से फौरन कमरे के अंदर गये और कहा कि मेरी दरख्वास्त लौटा दीजिए मुझे नहीं चाहिए आपका टिकट, उन्होने आवेदन लेकर वही उसे फाड़ दिया और लौट आए गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका मे अंग्रेज़ो द्वारा चलती ट्रेन से उतार दिए जाने से जेसा अपमानित महसूस किया उसी तरह उस घटना से अब्दुल कय्यूम अंसारी को भी धक्का लगा, उस छोटी-सी घटना से मुस्लिम लीग का असली चेहरा अब्दुल कय्यूम अंसारी के सामने आ गया था गौर किया तो पाया कि लीग मे जमींदार-जगीरदार नवाब,रईस और अशराफ़ खानदानों के अमीर लोग ही ऊपर से नीचे तक नेता बने हुए है आम मुसलमानो खासकर पासमांदा मुसलमानो का इस संगठन से भला होने वाला नहीं है यही वह समय था जब अब्दुल क़्य्युम अंसारी ने मोमिन कॉन्फ्रेंस मे शामिल होने और इसी के लिए अपनी पूरी जिंदगी वक्फ करने का फेसला कर लिया उनकी इस तहरीक मे शामिल होते ही गोया इस आंदोलन को पंख लग गये जल्दी ही पूरे उत्तर भारत की मुस्लिम राजनीति मे उनका नाम गूंजने लगा
(PG.144/ – ) “अली अनवर अंसारी” मसावात की जंग, 2001.
![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 5 Abdul Quiyum Ansari was Nationalist Freedom Fighter](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/Abdul-Quiyum-Ansari-was-Freedom-Fighter.jpg)
अब्दुल क़य्यूम अंसारी से मोहम्मद अली जिन्नाह क्यों नाराज थे?
मोहम्मद अली जिन्नाह के दो कौमी नज़रिया के खिलाफ पसमांदा मुसलमानो को संगठित करने से नाराज़ मुस्लिम लीगियों ने अब्दुल कय्यूम अंसारी को कौन-कौन सी गालियां नहीं दी उन्हे जूते की माला तक पहनायी सड़े अंडे और टमाटर उन पर फेंके उनको इस्लाम मोखालिफ काफिर तक घोसीत किया लेकिन इन बातों की परवाह किये बिना वह कौम और मिल्लत की बेहतरी के लिए लड़ते रहे आज़ादी मिलने के बाद भी मुस्लिम अशराफ नेताओ ने अब्दुल कय्यूम अंसारी को नहीं बख्सा, पटना का अंजुमन इसलामिया हाल इस बात का गवाह है कि भरी सभा मे उन पर किस तरह जानलेवा हमला किया गया इस केस मे कई अशराफ़ नेताओ के साथ गुलाम सरवर भी गिरफ्तार किये गये थे गुलाम सरवर और उनके अखबार संगम’ ने अब्दुल कय्यूम अंसारी को कौम का गद्दार मुसलमानो का दुश्मन सरकारी दलाल क्या क्या नहीं कहा लेकिन अब्दुल कय्यूम अंसारी तो हाथी कि तरह गंभीरता से आगे बढ़ते उन्होने न कभी पीछे मुड़कर देखने कि जरूरत समझी और न इन गालियों का जवाब दिया अलबत्ता राष्ट्रियपिता महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू से अब्दुल कय्यूम अंसारी को बराबर प्रशंसा मिली॰
(PG.144) “अली अनवर अंसारी” मसावात की जंग, 2001.
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मोमिन आंदोलन और अब्दुल क़य्यूम अंसारी के साथ न्याय नहीं किया।
अब्दुल क़य्यूम अंसारी भी मुसलमान थे और मौलाना अबुल आज़ाद भी मुस्लिम थे आज़ाद को सभी लोग जानते है क़य्यूम अंसारी को कम लोग जानते है जबकि क़य्यूम अंसारी का योगदान आज़ाद के मुकाबले बहुत ज्यादा है लेकिन आज़ाद को सैय्यद-अशराफ होने का फायदा मिला उनपर कई किताबें लिखी गई अकादेमी में उनको जगह दी गई उनके नाम पर स्कूल कॉलेज के नाम रखे गए लेकिन क़य्यूम अंसारी के साथ भेदभाव हुआ क्योंकि वे जुलाहा-पसमांदा थे इतिहास के पन्ने से कय्यूम अंसारी जी को गायब करने की कोशिश की अशराफिया वर्ग ने। अक्सरियत अशराफ वर्ग ने पाकिस्तान का निर्माण का समर्थन किया जबकि अक्सरियत पसमांदा ने मुल्क के बंटवारे का विरोध किया इतिहास लिखने वालों ने मोमिन आंदोलन और अब्दुल क़य्यूम अंसारी के साथ न्याय नहीं किया।
![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 6 Abdul Qaiyum Ansari Poster](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/1-Abdul-Qaiyum-Ansari.jpg)
![महान पसमांदा, स्वंतंत्रता सेनानी, मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता, क्यों अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भुला दिया गया 7 Abdul Qaiyum Ansari Poster](https://wahwahyar.com/wp-content/uploads/2023/01/ABDUL-QAYYUM-ANSARI.jpg)
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Razaul Haq Ansari is a Pasmanda Activist from Deoghar Jharkhand, He works to upliftment for unprivileged lower castes among Muslims [ST, SC and OBC among Muslims]. He is associated with anti-caste and social justice movement since 2018.