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30 जनवरी 2023, राँची में लीडरशिप प्रशिक्षण कार्यक्रम में झारखंड के अनेक जिलों से आए अगुवों को महत्वपूर्ण विषयों में संबोधन किया और साथ में *प्रवीण कच्छप, संदीप तिग्गा उरांव जी और पंकज तिर्की जी ने भी अपने विचारों को साझा किया।
- मुख्य प्रयास है कि समाज में एकजुटता लाया जाए
- आदिवासी समाज आज गरीब और पिछड़े क्यों है?
- आदिवासियों पर देश में कब तक भेदभाव चलता रहेगा?
Ranchi, Jharkhand News: में लीडरशिप प्रशिक्षण के इस कार्यक्रम में में झारखंड के अनेक जिलों से आए अगुवों को बताया गया की समाज में आदिवासियों की राजनितिक अहमियत क्या है? और विचार भी हुआ की क्यों आज पुरे देश में आदिवासी समाज की एकता को तोड़ा जा रहा है? वहीँ आगे ये भी निर्णय लिया गया की कैसे आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति को सुधारा जाए? कैसे आदिवासी समाज को अच्छी शिक्षा मिले?
मुख्य प्रयास है कि समाज में एकजुटता लाया जाए
राँची में लीडरशिप प्रशिक्षण के इस कार्यक्रम में में झारखंड के अनेक जिलों से आए अगुवों को बताया गया की समाज में रिश्तों और राजनितिक हकीकत की अहमियत क्या है? कैसे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो, कुछ नहीं करने वालों से बेहतर है कुछ करने वाला इंसान।
आदिवासियों में क्यों जरूरी है लीडरशिप प्रशिक्षण क्योंकि आदिवासी समाज को राजनीतिक भागीदारी तो है लेकिन राजनीतिज्ञों को उनमें लीडरशिप कि वह जो गुण होने चाहिए उनमें नहीं है, जिस कारण आदिवासी समाज आर्थिक सामाजिक शैक्षिक रूप से मजबूत नहीं हो रहा है उनके अंदर लीडरशिप डेवलपमेंट करने के लिए प्रवीण कच्छप, संदीप तिग्गा उरांव जी और पंकज तिर्की ने अपने अपने विचार साझा किए आदिवासी समाज सत्ता में मजबूत पकड़ रखती है लेकिन उनके चुने हुए प्रतिनिधि समाज के आदिवासी समाज में मूलभूत सुविधाओं और उनके अधिकारों से फिर भी वंचित रह जाते हैं तो लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत सिर्फ लोगों को ही नहीं बल्कि राजनेताओं को जो आदिवासी समाज से आते हैं उनको भी प्रशिक्षण होना चाहिए।
एकता क्यों जरुरी है?
इसके लिए आदिवासी समाज में एकजुटता बहुत जरूरी है आदिवासी समाज विभिन्न विभिन्न दलों में अपना प्रतिनिधित्व रखते हैं लेकिन उनमें कहीं ना कहीं भी खराब नजर आता है और आदिवासी समाज का जिस तरह राज्य में हिंदू करण हो रहा है उस कारण उन्हें सरना कोड और बाकी चीजों से मिलने में परेशानी हो रही है।
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आदिवासी समाज आज गरीब और पिछड़े क्यों है?
आज समाज भौतिकवाद की ओर बढ़ रहा है जिससे इंसानी रिश्तो का महत्व कम होता जा रहा है। सभी रिश्तो में स्वार्थ दिखाई देता है, लोग समाज से अमीर होते ही अपने अलग एक खुश वाला दुनिया बनाकर अपनों से दूर हो जाते है या अधिकारी बनने के बाद अपने समाज के पिछड़े लोगों को दर्द और अपना कष्ट सब भूल जाते है, अपने समाज में ही आजकल घरों में बड़े आदमी को कोई नहीं पूछता वे घर में सजावटी वस्तु बनकर रह गए हैं। सभी लोग आज की भागती दौड़ती जिंदगी के साथ कदम मिलाने के लिए भाग रहे हैं जिससे किसी के पास भी एक दूसरे का दुख सुख जानने का समय नहीं रहा है, यही गुलामी है। लेकिन किसी समाज को ये बात नहीं समझ आता है। भौतिकवादी और दिखावापन मैं घर के बुजुर्गों और बच्चों को एक दूसरे से दूर कर दिया है। इसे आज की पीढ़ी मानवीय रिश्तों और ये शॉर्ट्स और रील्स के दौर में पैसा तो कमा रहे है लेकिन हमारा समाज में शिक्षा में और गरीबी में सबसे ज्यादा हैं।
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आदिवासियों पर देश में कब तक भेदभाव चलता रहेगा?
कमी है आज का युवा खुद को राजनितिक हिस्सेदारी को समझने में असफल है, जिसका एक ये कारण है की आज आदिवासी समाज का ग्रामीण क्षेत्र बहुत पिछड़ा हैं। आदिवासी समाज को जान बुझ कर शिक्षा से दूर रखा गया है ताकि मजदूरी, नशा और पलायन करे और गरीब रहे। हमें अब जन जन तक जाना होगा और बताना होगा की शिक्षा ही शोषण और छुवाछुत को मिटा सकता है। हमारा शोषण और विस्थापन सदियों से होता आ रहा है। क्या हमारे समाज को कभी कोयला के नाम पर तो कभी हमें स्मार्ट सिटी के नाम पर तो कभी कारखाना के नाम पर हम आदिवासियों पर देश में कब तक भेदभाव चलता रहेगा?
अभी गोड्डा में अड़ानी ग्रुप को कोयला खनन के लिए आदिवासी समाज को दिनदहाड़े मारा जा रहा है, डराया जा रहा है की जगह खाली करो, क्या किसी एक पूंजीपति के लिए देश के मूलवासी को ऐसे खदेड़ा जायेगा? क्या यही समाजवाद है या यही लोकतंत्र है? केंद्र सरकार को इसका जवाब देना होगा. ऐसे डेवलपमेंट के नाम पर आदिवासियों को लुप्त किया जा रहा है. कब तक आदिवासियों की जंगल और जमीन छिनते रहोगे? क्या यही भला हो रहा है? आदिवासी तो दिन परती दिन पलायन और शोषण का शिकार हो रहे है हमे ऐसे मुद्दों पर आदिवासी समाज को एक होकर लड़ना होगा।
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